रज़िया मिर्ज़ा
"राज़"
Monday, February 8, 2010
स्वयं को समय दे पाना भी दूभर I
आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में इंसान इस कद्र लिप्त हो चुका है कि अपने-आपको समय दे पाना भी दूभर हो गया है. ऐसे में वह कह उठता है :-
ज़रा देर में आना ऐ होश I
अभी कहीं मै गया हुआ हूँ II
http://www.thenetpress.com/
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