बढते दाम ज़िन्दगी की रफ़तार को रोक लेंगे क्या?
आजकल महंगाई से तो मानो जान पर आ बनी है।
हर तरफ महंगाई का चर्चा है। मध्यम और ग़रीबों का तो कोई बेली ही नहिं रहा। जब जब महगाई का चर्चा होने लगता है तब तब और किसी न किसी
तरहाँ राजनीति खेली जाती है। पक्षा-पक्षी में
मरता तो सिर्फ़ ग़रीब ही है।
कहीं वोट के नाम पर विरोध हो रहा है कहीं नोट के नाम पर|
आज की ही बात ले लिजीये। एक जगह भीड इकट्ठा की गई थी महंगाई के ख़िलाफ़ पर उस भीड को पत्रकारों ने सवाल पूंछा आप यहाँ क्यों ईकटठा हुए हैं
तो भीड ने जवाब दिया हमारे मकान तोडे जा रहे हैं इसलिये हम आये हैं।
अब बताईये ये अनजान लोगों कि भावनाओं से खेलकर क्या मिलता है “वोट”!!!
रोज़रोज़ मज़दूरी करके अपना पेट भरनेवालों का ना तो किसी पक्ष से वास्ता है ना कि पार्टी से..
जो भी हो हम तो मोटी चमडीवाले जो ठहरे भैया ।
चलने दो थोडा और तभी तो हमारा वजुद रहेगा।
भला हमें क्या महंगाई से लेना देना? हमें तो पता भी नहिं महंगाई कौनसी बला का नाम है?
हमारे बच्चे तो कोंन्वेंट स्कुलों में पढते हैं। अच्छी से अच्छी फ़्लाईट को जी चाहे तब मोड सकते हैं।
पार्टीयाँ तो हररोज़ होती रहती हैं। हमें महंगाई के सोल्युशन से क्या?
हम तो तब ही इकट्ठा होते हैं जब संसद में हमारा भथ्था बढाना होता है ।
हमें आम जनता से क्या लेना देना? चाहे जीये या मरे।
जब इलेक्शन आयेगा तब देखा जायेगा। हमें कोई न कोई मुदा तो मिल ही जायेगा।
कुछ मस्ज़ीद की इंटें गिरा देंगे या मंदिर पर हमला करवा देंगे।
फ़िर भारत बंध का एलान देकर इन्ही गरीबों का मुंह का निवाला छीन लेंगे।
भथ्था बढाने के लिये तो ….
“हम साथ साथ हैं…..
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