Saturday, August 13, 2011

....पर वो नहिं थे जिनके चित्र बोलते थे वहाँ!!











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वडोदरा मध्यस्थ जेल में एक सप्ताह के लिये सर्जन आर्ट गेलेरी वडोदरा द्वारा एक आर्ट शिबिर का आयोजन किया गया गुजरात जेलविभाग के सहयोग़ से। मेरा परिवार, मेरा प्यारा घर विषय देनेपर इन बंदिवान कलाकारों का काम उनके चित्रों में उनके विचार ,भावनात्मक संवाद के साथ स्पष्ट नज़र आया कि ये लोग अपने घर-परिवार ,अपने बच्चों को याद कर रहे हैं।श्री हितेश राणा,श्री आनंद गुडप्पा, श्री कमल राणा,श्री मूसाभाई कच्छी,जैसे होनहार चित्रकारों के साये में कलाकार्यशाला से ज़्यादातर प्रतिभागियों को एक मंच मिला जो उनकी प्रतिभाओं को बाहर ला सका। यह बात से प्रभावित सर्जन आर्ट गेलेरी वडोदरा के श्री हितेश राणा को एक और कार्यशाला के आयोजन के अपने विचार करने पर मजबूर होना पड़ा।

हालांकि यह एक्रेलिक रंग तथा कैनवास के साथ नया प्रयोग था पर सभी प्रतिभागियों ने बडी ही चतुराई से उनके चित्रण में भावनात्मक रुप लगाकर ,निष्ठा से निपटाया। उसका द्रष्टांत यह है कि 27 साल के कुंवारे बंदि जसवंत मेरवान महाला ,जिसने ना कभी कैनवास देखा था ,उसने गुजरात के ढोंगार के अपने पितृक गांव के खेतों का चित्र बना दिया।

एक और प्रतिभागी 31 साल के विनोद भगवानदास माळी ने अपने पुरानी यादों को दर्शाया जहां उन्होंने कुशलता से अपने आपको दादी की गोद में एक बच्चे के रुपमें मातापिता के साथ चित्रित किया। वो अपनी पुरानी यादों के खयाल को, उस प्यारे घर और परिवारजनों को याद करते हैं। उनका कहना है कि यह कलाकार्यशाला से उनके घावों को भरने में बहूत लाभांवित हुई है इसने उन्हें अपने कौशल को साबित करने का मौका दिया जो उनके माता पिता को गर्व कराने में सक्षम हैं। जब की बका उर्फ़े भूरा तडवी ने अपने व्यथित मन से एक माँ को अपने 6 वर्षिय स्कुल जाते हुए बच्चे को तैयार करते हुए दिखाया गया है । पृष्टभूमि पर फूलों की माला पहने लगाई हुई अपनी तस्वीर से वो यह दिखाना चाहता है कि अब वह अपने घर-परिवार के लिये अधिक कुछ नहिं है।

पादरा जिले के कुरल गांव के 29 साल के सिकंदर इब्राहिम घांची ने विरह चित्र में अपनी पत्नी जो गोदमें अपनी 6 माह की बच्ची को लेकर घर के आँगन में उनका इंतेज़ार कर रही है। और स्वयं को दिल के निशान से बनी सलाखों के पीछे आंसु बहाते दिखाया है। घांची कलाशिबिर में अपने आप को खूलेआम व्यक्त करते हुए बडी ही द्रढता से यह कहता है कि उसका यह चित्र पूरी दुनिया में दिखाया जाना चाहिये। वह विरह के इस चित्र से अपना दर्द दिखाकर इसका भाग बनने की वजह से खुश है।

40 वर्षिय मनोज पटेल जिन्हों ने इससे पहले सेना में सेवा की। जेल में आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमो के वक्ता का रुप बडी ही निष्ठा से निभा रहे हैं।

अब वह अपनी संवेदनशील गुजराती कविताओं की रचना भी करते रहते हैं। उन्हों ने अपने चित्र में जेलों में रक्षाबंधनका महत्व को दर्शाया है। मनोज एक सच्चे,प्रेरणास्रोत हैं और सभी प्रतिभागियों के लिये उपयोगी हैं। उन्हों ने पश्चिम बंगाल के राजेश निमायचंद्र मित्ते के साथ बी.ए.का अध्ययन किया है।

42 साल की आयु के राजेश निमायचंद्र मित्ते , जो कभी स्टेनोटाइपीस्ट और बढ़ई का काम करते थे आज चित्रकार भी बन गये हैं। वह ये कलाकार्यशाला के संरक्षक रहे हैं। वह कहते हैं चित्रकला ने उन्हें पुन:जन्म दिया है। इससे उन्हें बहूत ख़ुशी और संतुष्टि मिली है। वे ये भी कहते हैं कि मैं अपने जीवन की कल्पना, कला के बिना कर ही नहिं सकता। उन्हों ने महिला की विभिन्न भूमिकाओं को उनकी मुसीबतों को ,अपने परिवार के प्रतिरोध के साथ दर्शाया है कहते हैं जेलकी तुलना में अपना संघर्ष ज़्यादा है।

ओरिस्सा के कनैया लींगराज प्रधान ,छोटी ही उम्र में पहली बार जेल में आये हैं। अपने तीन भाईयों के साथ गुजरात के सुरत में काम करते थे। जीन्होंने धान के खेत में अपनी पीठ पर बच्चा लिये काम करती महिला की तस्वीर को दर्शाकर उन कृषि मज़दूरों कि व्यथा को याद किया है जो अपने परिवार के जीवन के दो छेडे जोडने के लिये काफ़ी महेनत करते रहते हैं।

गुजरात संजाण के 27 साल के सतीष सोलंकी जिन्होंने अपने जेल रहते हुए ही अपने पिता को खो दिया । रक्षाबंधन की स्मृति में उनकी बहन उन्हें राखी बांधते हुए और दादीमाँ को ये द्रश्य निहारते हुए दिखाया है।

जितेन्द्रकुमार मेवालाल त्यागी ,सूरत के 26 साल के साइनबोर्ड के यह कलाकार मूलत: उत्तरप्रदेश के हैं,जिन्हों ने महिला और बच्चे के चित्र के साथ अपने वयोवृध्ध मातापिता को दिखाया है जो उसके रिहाई का इंतेज़ार कर रहे हैं।

सतीष सोलंकी और जितेन्द्र त्यागी के लिये तो चित्रकला शिबिर भविष्य के लिये एक ताज़गीसभर मंच है।

28 वर्षिय अशोककुमार भोजराजसींह, जिनका पुत्र जो पाठशाला जाना चाहता है पर अपनी आर्थिक परिस्थिती के चलते ये शक्य नहिं हो रहा । अपने चित्र के माध्यम से पाठशाला जाते हुए युनिफोर्म पहने बच्चों के समूह की और अपनी दादी का ध्यान दिलाने के लिये इशारा करते हुए अपने बेटे को दिखाया है।

दिलीपभाई मोतीभाई ,पूर्व सरकारी कर्मचारी बारह से अधिक वर्ष से जो जेल में हैं।

अपने पीछले जीवन के शांतिपूर्ण घर-परिवार को याद कर रहे हैं। परिवार के कमानेवाले एकमात्र सदस्य होने के नाते अपनी अनुपस्थिति में घर की आर्थिक परिस्थिति दर्शाने का प्रयास किया है अपने चित्रकला के माध्यम से किया है।

अर्जुन सिंह राठोड , वडोदरा के ही वतनी जो आयकर विभाग में डेप्युटी के पद पर थे, उन्हें अपने घर की बहोत याद आ रही है ये अपनी दिलचस्प कला से दिखाया है। जिसमें अपने दो बच्चों को पकडे हुए एक माँ को चित्रित किया है। उन्हों ने अपनी भावनाओं को केनवास पर दर्शाते हुए आयोजकों की सराहना की है।


जिग्नेश कनुभाई कहार, 30 साल के नवसारी के, यह मछुआरे का धंधा करके सुखी जीवन बितानेवाले यह बंदी अब बस छुटने ही वाले हैं। चित्र द्वारा उनके छुटने का इंतेज़ार करते हुए उसकी माँ को चित्रित किया है।

नीतीन भाई पटेल आयु 47 के कालवडा,वलसाड जिले के रहीश ने खूबसुरत नारियेल के पेडों से घीरे घर में अपने परिवार के सदस्यों में अपने पिताजी, छोटाभाई ,जीजाजी और अपने भतीजे को दर्शाया है ,अपनी पत्नी को अपनी रिहाई की मंदिर में प्रार्थना करते हुए दिखाया है।

अनवर अली मलेक आयु 38 जंबुसर का रिहायशी कढाई का कारिगर ,कुदरत के चित्र के साथ अपने घर के चित्र में जानवर पक्षी और पानी भरकर आती महिलाओं के साथ ,आँगन में बेठी बच्ची को खिलौनों के साथ दिखाया है। इस कलाकार ने बडी ही निपुणता से बीजली के खंभे के पास खडे व्यक्तिको अपनी बच्ची का हाथ पकडे द्रष्टिमान करते हुए परिवार की 11 साल लंबी जुदाई को दिखाया है। जीसे चित्रकला खुश रखती है।

अर्जुन रामचंद्रभाई पार्टे ,40 साल के सयाजीगंज वडोदरा के ही इस कलाकार ने रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर हाथ में राखी पकडे अपने बेटों का घर पर इंतेज़ार दिखाया है। कैनवास पर ये उसका पहला प्रयास है।

प्रशांत राजाराम बोकडे ,27 साल के महाराष्ट् के सुनार को जेल में आये 9 साल हो गये । उसने जीसे अभी तक देखा भी नहिं है ,उस भतीजी को जन्मदिन विश किया है और उसे सपना नाम भी दे रख्खा है। सपना वो कहते हैं उन्हें उसका जन्मदिन भी याद नहिं पर उसका जन्मदिन हररोज़ मनाते हैं। उसकी बहोत याद आती है।

अंत में महेश सोलंकी आयु 28 वर्ष कामदार ने एक पुरानी हवेली जो जेल सी दिखाई देती है दिखाया है। अपनी केरीयर के खो जाने दुखद परिस्थिती से आहत इस कलाकार की माँ भी इसी जेल में है।


अंत में जब ये प्रदर्शिनी को जनता के सामने 10 अगस्त को 'सर्जन आर्ट गेलेरी ' में ही रख्खा गया तब वो दिन इस टीम और मेरे लिये बहोत बड़ा दिन था। प्रशांत राजाराम बोकडे के चित्र से प्रदर्शीनी को जनता के लिये खोला गया। मेरी एक गुजराती रचना भी इस केटलोग पर रख्खी हुई थी। मुझे इस के बारे में जब बोलने को कहा गया तब मैंने सभी प्रदर्शनी में आये लोगों से कहा कि आप चित्र तो बना लेंगे पर आप इनकी तरहाँ संवेदनाएं नहिं भर सकते।

यहाँ बंदिवानों के रिश्तेदारों को भी बूलाया गया था। पर जिन्हों ने अपने विचारों को चित्रों में उतारा था वो बंदिवानों की ग़ेरमौजुदगी बहोत खल रही थी। कायदे के हिसाब से ये भी ज़रूरी था। जब मैं जेल में उन बंदिवानो से मिली वो बडे उतावले हो रहे थे ये जानने के लिये कि प्रदर्शनी में क्या क्या हुआ। पर मैंने रो दिया। कुछ कह नहिं पाई। एक केटलोग से उन्हें सब कुछ बता दिया। उन्होंने भी रो दिया।

केदी सुधारणा कार्यक्रम के अंतर्गत गुजरात जेल के आई जी श्री पी.सी.ठाकुर का प्रयास बेहद सराहनीय है। जो ऐसी प्रतिभाओं को किसी न किसी माध्यम से जनता समक्ष लानेका प्रयास करते रहते हैं।


2 comments:

Shalini kaushik said...

nice presentation आजादी ,आन्दोलन और हम

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...




आदरणीया रज़िया "राज़" जी
नमस्कार !
विशेष पोस्ट के लिए बधाई एवं आभार …

आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
नई पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है …
आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
:)


शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार