बादल से बरसा है पानी।
रिमज़िम रिमज़िम बरख़ा से लो
मिटी हो गइ पानी- पानी।
देखो आइ रुत मस्तानी।
पत्ते-पेड़ हुए हरियाले, भर गये देख़ो नदियां नाले।
धरती हो गइ धानी धानी...
देखो आइ रुत मस्तानी।
मेंढक ने जब शोर मचाया, मुन्ना से दौडा आया।
हँस हँस नाची ग़ुडीया रानी..
देखो आइ रुत मस्तानी।
बिजली चमकी बादल गरजे,रिमज़ीम रिमजीम बरख़ा बरसे।
देखो आइ रुत मस्तानी।
पपीहा पीऊ पीऊ गाता जाये,मोर अदाएं करता जाये।
करते हैं कैसी नादानी...
देखो आइ रुत मस्तानी।
मैं पगली नाचुं और गाऊं, भीगुं तो ऐसे शरमाऊं।
बरखा ने दी पूरी जवानी..
देखो आइ रुत मस्तानी।
4 comments:
मौसमी मिज़ाज को आपने बखूबी चित्रित किया है.
बहुत अच्छी रचना के लिये बधाई
ऐसी बारिश तो नहीं हुई अबतक यहां .. पर आपकी रचना पढकर मन सराबोंर हो गया !!
बहुत अच्छी रचना . बधाई
रज़िया आपकी रचना पढ़के सुखद अनुभूति हुई!
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1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
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