पीछे मुड के हमने जब देख़ा ,गुज़रा वो ज़माना याद आया।
बीती एक कहानी याद आइ, बीता एक फ़साना याद आया।.....पीछे.
सितारों को छूने की चाहत में, हम शम्मे मुहब्बत भूल गये।(2)
जब शम्मा जली एक कोने में, हम को परवाना याद आया।.....पीछे.
शीशे के महल में रहकर हम, तो हँसना-हँसाना भूल गये।(2)
पीपल की ठंडी छाँव तले वो हॅसना-हॅसाना याद आया।.....पीछे.
दौलत ही नहीं ज़ीने के लिये, रिश्ते भी ज़रूरी होते है।(2)
दौलत ना रही जब हाथों में, रिश्तों का खज़ाना याद आया।.....पीछे.
शहरॉ की ज़गमग-ज़गमग में, हम गीत वफ़ा के भूल गये।(2)
सागर की लहरॉ पे हमने, गाया था तराना याद आया।.....पीछे.
चलते ही रहे चलते ही रहे, मंजिल का पता मालूम न था।(2)
वतन की वो भीगी मिट्टी का अपना वो ठिकाना याद आया।.....पीछे.
अपनॉ ने हमें कमज़ोर किया, बाबुल वो हमारे याद आये।(2)
कमज़ोर वो ऑखॉ से उन को वो अपना रुलाना याद आया।.....पीछे.
अय “राज़” कलम तुं रोक यहीं, वरना हम भी रो देंगे।(2)
तेरी ये गज़ल में हमको भी कोइ वक़्त पुराना याद आया।.....पीछे.
5 comments:
सचमुच में बहुत प्रभावशाली लेखन है... बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी… बधाई स्वीकारें।
from- YADEIN
http://ravi-yadein.blogspot.com/
बहुत सुन्दर काव्य रचना
Sundar blog, sundar rachna.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
दौलत ही नहीं ज़ीने के लिये, रिश्ते भी ज़रूरी होते है।(2)
दौलत ना रही जब हाथों में, रिश्तों का खज़ाना याद आया।.....पीछे.
behad khubsurat
अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार और सटीक शब्दों के चयन से आपकी अभिव्यक्ति बड़ी प्रखर हो गई है।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-इन देशभक्त महिलाओं के जज्बे को सलाम-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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