हाँ !
में "माँ" हुं।
कभी मैं भी जवान थी।
पर आज 63 कि उम्र में अब 100 से भी ज़्यादा लग रही हुं।
कारन?
....... मेरे कुछ बेवफ़ा/ गद्दार "संतानों"कि वजह से।
जिन्हों ने मुझे कमज़ोर कर दिया है।
आज में आपको अपनी तस्वीर बतानेवाली हुं एक आत्मकथा के रुप में।
पर अब सिर्फ़ कहलाने को रह गई हुं। मेरी ही संतान मुझे खोखला करने पर तुली हुई है।
दुनिया के सामने तो मेरा नाम बडे ही गर्व से लेती है मेरी संतान के कि ये हमारी "माँ "है।
पर अंदर ही अंदर मेरे बच्चे आपस में लड़ते-झगडते रहते हैं।
वो भी क्या ज़माना था कि मेरे लिये जान देने को मेरी संतान तैयार थी।
पर आज ...... ये संतान मेरी जान के पीछे पडी हुई है।
अपने स्वार्थ की ख़ातिर इन लोगों ने मुझे बदनाम कर रख्खा है।
कभी पैसों कि खातिर तो कभी ज़मीन की ख़ातिर।
कहती रहती हुं कि भाई !!
अरे आपस में मिलकर रहो ।
"अगर तुम सब यूं ही लडते-झगडते रहोगे तो पडोसी तो खुश होंगे ही"।
कहेंगे "अपने आप पर ये "माँ" को बडा गुरुर था । जाने दो ये सब बाहरी दिखावा है भीतर क्या है खुलकर सामनेआता है"।
बताओ तब मेरा ख़ून खौलेगा या नहिं???????
क्यों मेरी आत्मा के साथ "आई पी एल" ख़ेले जा रहेहो "भ्रष्टाचार "के रुप में?
4 comments:
63 वर्षीया माँ की त्रासद हालात
बेटे ही गद्दार हों तो माँ की हालत ऐसी ही होती है
बहुत भावपूर्ण रचना
बेहतरीन
रजिया, माकी पुकार्ने मुझे रुला दिया क्या मै भि वैसा ्बेटा हु माका ? शायद इस विचारसे..आन्सुओको कैसे समझु...बहोत हि सही..कितनी व्यापक भावना है ...माकी और ऐस ही होना चाहीये ...
संसारमे सबसे जियादा मा तुम हो महान
ईसिलिये ओ मा तुझे बार्बार प्रणाम !!!-dilip
आपको अभिनन्दन..और वादा की मे ऐस काम न करु जिस्से मा की गरगन शर्मसे झुक जाये...
दिलीप
http://leicestergurjari.wordpress.com/2009/03/18/mothers-day-song-by-dilip-gajjar/maa-tum-ho-mahan-1/
रझिया बहोत हि खुब कहा..मांको शर्मसार तो ना करे नालायाक बचे होके...मां तुजे सलाम!!बहोत ही सची बात कागजपे उभरी है
सपना
Hai nehayat khoosoorat yeh blog
Pesh karta hooN mubarakbaad maiN
Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi
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