Monday, January 14, 2013

..उतरायन




14 जनवरी ‘उतरायन’ की सुब्ह में रंगबेरंगी पतंगों से भरे आकाश में चारों और से बच्चों की किलकारीओं के बीच, कहीं छत पर रख़े हुए स्पीकरों में बजते हुए शोर में, रंगबिरंगी टोपी,हेट और चहेरों पर गोगल्स की रंगीनीओं में उपर से नीचे की और अचानक नज़र जाते ही......
एक ख़ाट पर फ़टे हुए,कटे हुए पतंगों की उलझी हुई डोर को सुलझाकर अलग करते हुए तूं आवाज लगा रही है....लो बेटा ये ले लो...ये दोरी बहूत बडी है., इससे पतंग चढाओ।
 सर्दी की सर्द ऋत में पुराना स्वेटर पहनकर ,गुज़रे वक़्त की चुगली करते हुए झुरियों वाले हाथ की तरख़ी हुई उंगलियों में मांजा पीलाई हुई पतंग की डोर फ़ंस जाने से उस में से ख़ून की बूंद गीर रही थी,शायद तूझे पता नहिं था, या फ़िर जानबूझकर अनजान हो रही थी ऐसा मुझे लगा। तेरे सर पर बंधा सुफ़ेद स्कार्फ़ के ख़ुला हुआ उन में तेरे सुफ़ेद बाल मिलकर हवाके साथ उडते हैं तब ये पता ही नहिं लग पाता कि ये उन है या तेरे सुफ़ेद बाल , जो हमारी ज़िन्दगीओं के पीछे सुफ़ेद हो चले हैं।!!!
 “ वो कटी के शोर में , अचानक तंद्रा में से जागकर मैंने छत से नीचे नज़र की तो....तूं अद्रश्य थी.....
जी हाँ। याद आया, तूं तो कबसे चली गई हो अपनी जीवनडोर को समेतकर, बरसों से......उस कटी पतंग की तरहां दूर पतंगों के देश में....
मेरे देखे हुए इस द्रश्य को शायद किसी ने नहिं देखा होगा, क्योंकि सब कोई व्यस्त हैं ,अपने अपने जीवन के पतंग उडाने में....मैंने अपने रोते हुए दिल, आंख़ों को पोंछ लिया...और रंगीन गोगल्स चढा लिये अपनी आंख़ों पर...ताकि कोई मुझे देख न पाए रोते हुए.....पर मेरी नज़रे ढूंढती रहती हैं तुझे उसी ख़ाट पर जहाँ तूं बैठी थी डोर को हाथ में लिये..."माँ"

2 comments:

સ્વપ્ન જેસરવાકર said...

વ્હાલા બહેન શ્રી રઝીયા બહેન,
મકર સક્રાંતિની ખુબ ખુબ શુભ કામના .
ઘણા સમય બાદ બ્લોગ જગતે પધાર્યા
હાલ આપ ક્યા છો ? વડોદરા કે પેટલાદ

સ્વપ્ન જેસરવાકર said...

વ્હાલા બહેન શ્રી રઝીયા બહેન,
મકર સક્રાંતિની ખુબ ખુબ શુભ કામના .
ઘણા સમય બાદ બ્લોગ જગતે પધાર્યા
હાલ આપ ક્યા છો ? વડોદરા કે પેટલાદ