Saturday, July 11, 2009

तालीम के लब्ज़ों को...


तालीम के लब्ज़ों को हम तीर बना लेंगे।
मिसरा जो बने पूरा शमशीर बना लेंगे।

जाहिल
रहे कोई, ग़ाफ़िल रहे कोई।
हम मर्ज कि दवा को अकसीर बना लेंगे।

रस्मों
के दायरों से हम अब निकल चूके है।
हम ईल्म की दौलत को जागीर बना लेंगे।

अबतक
तो ज़माने कि ज़िल्लत उठाई हमने।
ताक़िद ये करते हैं, तदबीर बना लेंगे।

जिसने
बुलंदीओं कि ताक़ात हम को दी है।
हम भी वो सिपाही की तस्वीर बना लेंगे।

मग़रीब
से या मशरीक से, उत्तर से या दख़्ख़न से।
तादाद को हम मिल के ज़ंजीर बना देंगे।

मिलज़ुल
के जो बन जाये, ज़ंजीर हमारी तब।
अयराज़ईसी को हम तक़दीर बना लेंगे।

13 comments:

निर्मला कपिला said...

जिसने बुलंदीओं कि ताक़ात हम को दी है।
हम भी वो सिपाही की तस्वीर बना लेंगे।
बहुत खूब बिन्दास अन्दाज लाजवाब बधाई

M VERMA said...

मिसरा जो बने पूरा शमशीर बना लेंगे।
क्या बात है. बहुत उम्दा शेर. उम्दा खयालात.
बहुत सुन्दर

Anonymous said...

बहुत खूब !!

Razi Shahab said...

उम्दा खयालात.
बहुत सुन्दर
बिन्दास अन्दाज लाजवाब बधाई

दिगम्बर नासवा said...

रस्मों के दायरों से हम अब निकल चूके है।
हम ईल्म की दौलत को जागीर बना लेंगे।

यूँ तो हस शेर काबिले तारीफ है ......... पूरी ग़ज़ल लाजवाब है पर ये बहूत पसंद आया .....कमाल का लिखा है

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

जिसने बुलंदीओं कि ताक़ात हम को दी है।
हम भी वो सिपाही की तस्वीर बना लेंगे।
बहुत ही बेहतरीन है
सादर
प्रवीण पथिक

Divya Narmada said...

मिसरे सभी रजिया के, दिल को 'सलिल' के छूते .

दो दर्द हमको सारे, तहरीर बना लेंगे..

Vipin Behari Goyal said...

रस्मों के दायरों से हम अब निकल चूके है।
हम ईल्म की दौलत को जागीर बना लेंगे।

बहुत बेहतरीन है

Amit K Sagar said...

वाह! वाह! वाह!
--
पंख, आबिदा और खुदा

एस एम् मासूम said...

मग़रिब से या मशरिक से ,उतेर से या दक्कन से,
तादात को हम मिल के ज़ंजीर बना देंगे .
.

वाह बहुत खूब. "अमन के पैग़ाम: के लिए मुझे पसंद आया. आपकी ख़ुशी हो तो आप के नाम के साथ इसको कहीं अपनी पोस्ट मैं इस्तेमाल करूं.

mridula pradhan said...

wah....wah...

Azad Ahmad said...

bahot khoob

रज़िया "राज़" said...

वाह। बहोत ख़ूब