आदमी है, आदमी से मिल मिलाता तू चलाजा।
गीत कोइ प्यार के बस गुनगुनाता तू चलाजा।
गर तुझे अँधियारा राहों में मिले तो याद रख़,
हर जगह दीपक उजाले के जलाता तू चलाजा।
जो तुझे चूभ जायें काँटे, राह में हो बेखबर,
अपने हाथों से हटा कर, गुल बिछाता तू चलाजा।
सामने तेरे ख़डी है जिंदगानी देख ले,
बीती यादों को सदा दिल से मिटाता तू चलाजा।
”राज़” हम आये हैं दुनिया में ही ज़ीने के लिये।
हँस के जी ले प्यार से और मुस्कुराता तू चलाजा।
5 comments:
सुन्दर भाव तो है ही साथ मे सुन्दर सन्देश भी है..........बधाई
जो तुझे चूभ जायें काँटे, राह में हो बेखबर, अपने हाथों से हटा कर, गुल बिछाता तू चलाजा
Lajawaab bhaav prastut kiye hai is rachna mein...... aashaa ki kiran jagaati achhee rachna hai....
गर तुझे अँधियारा राहों में मिले तो याद रख़,
हर जगह दीपक उजाले के जलाता तू चलाजा।
इन दो पंक्तियों में बड़े ही सुन्दर भावः पेश किये है आपने. बधाई. अगर सभी ऐसा करने लग जाये तो अँधेरा होगा ही नहीं. आपकी और मेरी लेखनी में मात्र इतना ही फर्क है की आप अपने दिल के भावः को शब्दों में पिरो कर कविता बनाते हो और मै उन्ही शब्दों से गुफ्तगू करता हूँ. मेरी गुफ्तगू पर आपका भी स्वागत है. www.gooftgu.blogspot.com
WAAH RAZIYA JI,
MUBAARAQ HO.................
GHAZAL KE SABHI SHE'R TOH SANJEEDA KHUSHBOO SE MAHAKDAAR AUR UMDAA
HONE K SATH SATH PYAARE HAIN HI ...
AAPKE BLOG KA SAJAAV SINGAAR BHI LUBHAAVNAA HAI....
BADHAAI !
BAHUT BAHUT BADHAAI !
बहुत ही सुन्दर रचना...सुन्दर भाव .
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