आज कोइ फ़ंकशन है। मेरे प्रिन्सीपाल और कुछ टिचर्स भी आये हैं। पर......अभी तक मेरी सहेलीयाँ क्यों नहिं आई? परेशान हुं मैं!!!!
मेरी मौसी-मौसा भी नहिं आये। अंक्ल आंटी दूर क्यों बैठे है मुझसे?
हरबार प्यार से मेरे साथ खेलनेवाले चिंकु बंटी आज मेरे पास क्यों नहिं बैठते?
क्यों सब कोइ मुझसे दूर दूर भाग रहे हैं ?
कहीं से घी की तो कहीं से आ रही अगरबत्ती के धुएं की बदबू मुझे बेचेन कर रही है।
ये कैसा कार्यक्रम है जिसमें सन्नाटा छाया हुआ है?
मैं ये नहिं समझ पा रही कि मुझे कोइ प्यार से पुचकारता क्यों नहिं है?
साथ में खेलनेवाली सहेलीयाँ भी आज गायब हैं। घर के बाहर लगी भीड में कानाफुसी चल रही है।
लो अब मेरी बिदाई का वक़्त आ गया।
मेरे चहेरे से कपड़ा हटाया गया ताक़ि कोइ मुझसे मिलना चाहे तो मिल ले।
पर सब लोग मुंह पर कपड़ा डालकर रोने लगे। कोइ आगे नहिं आया।
मुझे बिदा करने भी नहिं।
हाँ....... मेरी मम्मी दौडती चिल्लाती मेरे करीब आई। मेरे चहेरे को चुमने लगी। रिश्तेदारलोग उसे मुझसे दूर हटाने कि कोशिश कर रहे थे पर वो थी कि मुझे छोड ही नहिं रही थी।
छोडती भी कैसे....?
उसने मुझे अपने उदर में नौ महिने जो रख्खा था। मुझे अपना अमृत जो पीलाया था।
वो अच्छी तरहाँ जानती थी कि उसकी बेटी का आख़री दिन है। फिर मैं कभी वापस आनेवाली नहिं हुं।
क्योंकि आज मेरी मृत्यु हुई है।
लोग कह रहे थे कि मेरी मृत्यु “स्वाइन फ़्ल्यु” से हुई है।
अब मैं समझी कि सब कोइ दूर दूर क्यों भाग रहे थे मुझसे।
3 comments:
रजिया जी - अच्छी रचना लेकिन फूल वाले डिजाइन के कारण पढ़ने में दिक्कत हो रही है।
अच्छी रचना है।बधाई।
बेहतरीन रचना. सुरक्षा कवच के आवरण के बीच प्यार का इज़हार कैसे हो?
"मेरे चहेरे से कपड़ा हटाया गया ताक़ि कोइ मुझसे मिलना चाहे तो मिल ले। पर सब लोग मुंह पर कपड़ा डालकर रोने लगे।"
संवेदनाओ की गहरी आहट है या शायद संवदनाए ही आहत है.
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