.....तेरी यादें....
मैं चुराकर लाई हुं तेरी वो तस्वीर जो हमारे साथ तूने खींचवाई थी मेरे परदेस जाने पर।
में चुराकर लाई हुं तेरे हाथों के वो रुमाल जिससे तूं अपना चहेरा पोंछा करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं वो तेरे कपडे जो तुं पहना करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं पानी का वो प्याला, जो तु हम सब से अलग छूपाए रख़ती थी।
मैं चुराकर लाई हुं वो बिस्तर, जिस पर तूं सोया करती थी।
मैं चुराकर लाई हुं कुछ रुपये जिस पर तेरे पान ख़ाई उँगलीयों के नशाँ हैं।
मैं चुराकर लाई हुं तेरे सुफ़ेद बाल, जिससे मैं तेरी चोटी बनाया करती थी।
जी चाहता है उन सब चीज़ों को चुरा लाउं जिस जिस को तेरी उँगलीयों ने छुआ है।
हर दिवार, तेरे बोये हुए पौधे,तेरी तसबीह , तेरे सज़दे,तेरे ख़्वाब,तेरी दवाई, तेरी रज़ाई।
यहां तक की तेरी कलाई से उतारी गई वो, सुहागन चुडीयाँ, चुरा लाई हुं “माँ”।
घर आकर आईने के सामने अपने को तेरे कपडों में देख़ा तो,
मानों आईने के उस पार से तूं बोली, “बेटी कितनी यादोँ को समेटती रहोगी?
मैं तुझ में तो समाई हुई हुं।
“तुं ही तो मेरा वजुद है बेटी”
16 comments:
रजियाजी,
आपकी रचना बेहद्मार्मिक है...यादों का ऐसा कारवां गुज़र गया दिलसे कि कई अपनों से मिलनेका मन करने लगा...
बस आँखें नम हो गयी बहुत मार्मिक दिल को छू गयी कविता आभार्
मैं तुज में तो समाई हुई हुं।
“तुं ही तो मेरा वजुद है बेटी”
बहुत ही सुन्दर दिल को छूने वाले शब्दों के साथ भावूपर्ण रचना के लिये बधाई ।
क्या कहूँ...शब्द ही छीन लिए हैं आपकी इस रचना ने...अद्भुत...बेमिसाल...सीधे साधे लफ्जों में दिल की बात सीधी दिल तक पहुँचती है...बहुत बहुत बधाई आपको...
आपके ब्लॉग की साज सज्जा बहुत ही सुन्दर है...बड़ा अच्छा लगा यहाँ आ कर...
नीरज
बहुत बहुत सुन्दर
मार्मिकता से भरी यह रचना न जाने कितनी संवेदनाओ को एक साथ जगा गयी.
बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर रचना के लिये बधाई ...
रजिया जी क्या कहूँ इतनी मार्मिक कविता के लिए मेरे शब्द ही भावनाओं में वह गए है ,, वस् नतमस्तक हूँ और उसके वजूद में अपना वजूद तलाश रहा हूँ
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
क्या बात है!
“बेटी कितनी यादोँ को समेटती रहोगी? मैं तुज में तो समाई हुई हुं। “तुं ही तो मेरा वजुद है बेटी”
सुन्दर.
DIL MEIN SEEDHE UTART GAYEE AAPKI YE RACHNA ..... SACH MEIN BETI TO MA KA HI ROOP HOTI HAI .... MAA APNE AAP KO BETI MEIN HI DHOONDHTI HAI ....
MARMIK, KAALJAYEE RACHNA ...
Fir Teri kahani yaad aai
For Raziyaben Mirza (Galib)
"Speechless end!!!
Extreme level of love and emotions from both sides, mother and child.
I have proud for you that you are my colleague.
Very much simplicity seen behind legend and hidden personality."
Thanks a lot
Bahot sal pahle ka aaj reply de rahi hun.Aabhaar
Aabhaar
Shukriya ..BAHOT sal pahle answer dena chaiye tha mujhe..per kuchh ulzanon me ulaz gae the hamlog. Sorry
Aabhar
Post a Comment