दिल को दहला देनेवाली रोंगटे ख़डे कर देनेवाली ऐसी बडी ख़बर,,,! हमारे जीवन के साथ-साथ हमारे आस-पास के जीवों को भी हिला कर रख देती है।
यहाँ आतंकवाद के सामने एक ज़ुट होकर मुकाबला करने की ज़रूरत है । आपस में उंच-नीच, धर्म-मज़हब,या फ़िर... नस्लवाद या राज्यवाद और "वेलेंटाईन डे" के विरोध में फ़िर अपने आप को "महान" बताने की दौड में...
...... कहीं हम सब ये तो नहिं भूल गये हैं कि हमारे देश को ज़रुरत है सौहार्द-एकता-अखंडता की।
चिंतनशील प्रबुद्ध वर्ग के लिये एक प्रश्न है। जब भी कोई एक ऐसी घटना समाचार जगत पर छा जाये जो हमारे ही देश के किसी राजनीतिक दल अथवा संगठन के लिये समस्या पैदा कर रही हो तो कहीं एक धमाका हो जाता है। सारा मीडिया धमाके की ओर भाग लेता है और पुरानी घटना दब जाती है। क्या इस सूत्र पर हमारी सुरक्षा एजेंसी काम करती हैं? समाचार जगत की पिछले दस साल की घटनाओं को परस्पर जोड़कर देखा जाये तो एक विचित्र स्थिति सामने आती है जिससे लगता है कि अगर हमारे देश में होने वाली हर आतंकी घटना के सूत्र बाहरी ताकतों से जुड़े हैं तो ये सूत्र इस देश में भी कहीं विद्यमान हैं। गोला-बारूद कहीं का भी हो, ट्रिगर कहॉं से दबता है, यह चिन्तन और मन्थन का विषय है। जरूरी नहीं कि ये अनुमान सही ही हो लेकिन.....?
4 comments:
दुखद...अभी समाचार ही देख रहे हैं.
बहुत दुखद !!
चिंतनशील प्रबुद्ध वर्ग के लिये एक प्रश्न है। जब भी कोई एक ऐसी घटना समाचार जगत पर छा जाये जो हमारे ही देश के किसी राजनीतिक दल अथवा संगठन के लिये समस्या पैदा कर रही हो तो कहीं एक धमाका हो जाता है। सारा मीडिया धमाके की ओर भाग लेता है और पुरानी घटना दब जाती है। क्या इस सूत्र पर हमारी सुरक्षा एजेंसी काम करती हैं?
समाचार जगत की पिछले दस साल की घटनाओं को परस्पर जोड़कर देखा जाये तो एक विचित्र स्थिति सामने आती है जिससे लगता है कि अगर हमारे देश में होने वाली हर आतंकी घटना के सूत्र बाहरी ताकतों से जुड़े हैं तो ये सूत्र इस देश में भी कहीं विद्यमान हैं। गोला-बारूद कहीं का भी हो, ट्रिगर कहॉं से दबता है, यह चिन्तन और मन्थन का विषय है। जरूरी नहीं कि ये अनुमान सही ही हो लेकिन.....?
bahut khub... evam at dukhad..
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