Thursday, January 20, 2011

.....कहीं हमारे पंखों को...?

पतंग

आज एक दिन के लिये ये आसमाँ पर तुम अपना हक़ जताने चले हो अपने रंग-बिरगी पंखों से सभी को ललचाने लगते हो?

… पर ये मत भूलो तुम्हें एक डोर पकडे हुए है।

तुम डोर के सहारे आसमाँ की उंचाई नापने कि कोशिश करते हो?

तुम तो एक कठपूतली के समान हो जैसे किसी हाथ से डोर तूटी तुम भी कट जाते हो।

….और फ़िर किसी ओर के हाथों में चले जाते हो।

तुम में जान थोडी है? जो ईतना इतराते हो आसमाँ पर …!!!

एक दिन के सुलतान बने बैठे हो ।तुम हो क्या ?

तुम तो एक कागज़ के बने निर्जीव हो!!!

तुम ये मत भूलो कि हम तो एक ज़िन्दा जीव हैं।

सुबह होते ही अपने घोसलों से कहीं दूर..दूर अपने लिये तो कभी अपने बच्चों के लिये दाना चुगने जाते हैं।

शाम होते ही अपने घर लौट आते हैं फ़िर यही अपने पंखों पर..

उडना ही हमारा क्रम है।

देखना कहीं हमारे पंखों को काट मत देना वरना हम आस्माँ को फ़िर कभी छू नहिं पायेंगे।

8 comments:

सहज समाधि आश्रम said...

I really enjoyed reading the posts on your blog.

सहज समाधि आश्रम said...

जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
सिलसिला जारी रखें ।
आपको पुनः बधाई ।

रेयाज़ बघाकोली said...

@ Razia Raaz....
तुम डोर के सहारे आसमाँ की उंचाई नापने कि कोशिश करते हो? तुम तो एक कठपूतली के समान हो जैसे किसी हाथ से डोर तूटी तुम भी कट जाते हो। ….और फ़िर किसी ओर के हाथों में चले जाते हो।

wah.. wah.. kya baat kahi hai.

vijay kumar sappatti said...

bahut sundar rachna...

choti si baat hai lekin dil me kahin pahunchti hai ..

saarthak lekh.

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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय

संजय भास्‍कर said...

रजिया राज जी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

संजय भास्‍कर said...

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Sunil Kumar said...

तुम डोर के सहारे आसमाँ की उंचाई नापने कि कोशिश करते हो? तुम तो एक कठपूतली के समान हो
सही कह आपने डोर टूटी तो ? अर्थों को समेटे हुए अच्छी लगी , बधाई......
शायद आपका व्लाग पहली बार देखा |

M VERMA said...

तुम तो एक कठपूतली के समान हो
शायद हम सभी एक कठपुतली के ही समान हैं
बहुत सुन्दर रचना