क्यों कैसी रही?आज?
वक़्त कब और कैसे
और फ़िर
सब कोइ कहता था कि आप से ही मैं हुं।
आप के बिना मेरा कोइ वज़ुद नहिं।
मैं हमेशाँ ख़ामोश रहा।
या कहो कि मेने भी
लोग कहते थे कि मेरा मिज़ाज ठंडा है और आप का गर्म।
ख़ेर मैं चुपचाप सुन लिया करता था
भाइ में
पर आज मैं तुम पर हावी हो गया सिर्फ दो घंटों के लिये ही सही।
सारी दुनिया ने देख़ा कि आज तुम नर्म थे छुप गये थे एक गुनाहगार कि तरहाँ।
थोडी देर के लिये तो मुज़े बड़ा होने दो भैया!
पर एक
मैं आप पर हावी
पर मैं क्या करता क़ुदरत के
बूरा
देख़ो
लो मैने अपनी परछाई को आप पर से हटा लिया।
आपको
2 comments:
नये नजरिये के लिये बधाई.
आपने तो गर्म को भी नर्म साबित कर दिया.
बहुत खूब
पर एक बात कहुं मुज़े आप पर तरस आ रहा था जब लोग तमाशा देख रहे थे तब!
मैं आप पर हावी होना नहिं चाहता था।
पर मैं क्या करता क़ुदरत के आगे किसी का ना चला है ना चलेगा।
बूरा मत लगाना।
kya baat hai,chand aisa bhi sochta hai,sunde rahcana bahut alag si bahut achhi lagi,badhai
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