जाने कैसा ये बंधन है?
उजला तन और मैला मन है।
एक हाथ से दान वो देता।
दूजे से कंइ जानें लेता।
रहता बन के दोस्त सभी का।
पर ये तो उनका दुश्मन है।
इन्सानो के भेष में रहता।
शैतानों से काम वो करता।
बन के रहता देव सभी का।
पर ना ये दानव से कम है।
चाहे कितने भेष बनाये।
चाहे कितने भेद छुपाये।
”राज़” उसके चेहरे में क्या है?
देखो सच कहता दर्पण है।
6 comments:
बहुत सुन्दर रचना है बधाई
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
इन्सानो के भेष में रहता।
शैतानों से काम वो करता।
बेहतरीन रचना. सुन्दर भाव
एक हाथ से दान वो देता।
दूजे से कंइ जानें लेता।
रहता बन के दोस्त सभी का।
पर ये तो उनका दुश्मन है
DUNDAR BHAAV HAIN AAPKI KAVITA MEIN ... SACH KAHA HAI ...DARPAN SACH HI KAHTA HAI ...
आजकल ज़माना इन्हीं से भरा पड़ा है ...
सुन्दर रचना
राज़” उसके चेहरे में क्या है?
देखो सच कहता दर्पण
very true lines.........
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