Monday, August 31, 2009

.......दर्पण.....




जाने कैसा ये बंधन है?

उजला तन और मैला मन है।


एक हाथ से दान वो देता।

दूजे से कंइ जानें लेता।


रहता बन के दोस्त सभी का।

पर ये तो उनका दुश्मन है।


इन्सानो के भेष में रहता।

शैतानों से काम वो करता।


बन के रहता देव सभी का।

पर ना ये दानव से कम है।


चाहे कितने भेष बनाये।

चाहे कितने भेद छुपाये।


राज़ उसके चेहरे में क्या है?

देखो सच कहता दर्पण है।

6 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर रचना है बधाई

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

M VERMA said...

इन्सानो के भेष में रहता।
शैतानों से काम वो करता।
बेहतरीन रचना. सुन्दर भाव

दिगम्बर नासवा said...

एक हाथ से दान वो देता।
दूजे से कंइ जानें लेता।

रहता बन के दोस्त सभी का।
पर ये तो उनका दुश्मन है

DUNDAR BHAAV HAIN AAPKI KAVITA MEIN ... SACH KAHA HAI ...DARPAN SACH HI KAHTA HAI ...

राजीव तनेजा said...

आजकल ज़माना इन्हीं से भरा पड़ा है ...

सुन्दर रचना

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

राज़” उसके चेहरे में क्या है?
देखो सच कहता दर्पण

very true lines.........