Monday, September 7, 2009

????क्यों देर हुई साजन ..तेरे यहाँ आने में???



क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?

क्या क्या न सहा हमने अपने को मनानेमें।

तुने तो हमें ज़ालिम क्या से क्या बना डाला?

अब कैसे यकीँ कर लें, हम तेरे बहाने में।

उम्मीदों के दीपक को हमने जो जलाया था।

तुने ये पहल कर दी, क्यों उसको बुज़ाने में।

बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।

कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।

थोडी सी वफ़ादारी गर हमको जो मिल जाती,

क्या कुछ भी नहिं बाक़ी अब तेरे ख़ज़ाने में।

अय ‘राज़’ उसे छोडो क्यों उसकी फ़िकर इतनी।

अब ख़ैर यहीं करलो, तुम उसको भुलाने में।

8 comments:

mehek said...

बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।

कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।

थोडी सी वफ़ादारी गर हमको जो मिल जाती,

क्या कुछ भी नहिं बाक़ी अब तेरे ख़ज़ाने में।
waah raziya ji ,gazab dhaya hai,ishq bhi beintehaan,aur bhulane ki adabhi,dil kitna kashmakash mein rehta hai,behtairn,bahut sunder abhivyakti.

विनोद कुमार पांडेय said...

प्यार और एहसास से भरपूर सुंदर भावपूर्ण कविता..
धन्यवाद..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?

क्या क्या न सहा हमने अपने को मनानेमें।

तुने तो हमें ज़ालिम क्या से क्या बना डाला?

अब कैसे यकीँ कर लें, हम तेरे बहाने में।

उम्मीदों के दीपक को हमने जो जलाया था।

तुने ये पहल कर दी, क्यों उसको बुज़ाने में।


kya likha hai aapne......... aapne to speechless kar diya.....

યુવા રોજગાર - Yuvarojagar said...

बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।

कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।

वाह कया बात है. बहुत खुब, दिल से निकली आवाज !
बहुती बढिया अभिव्यकिती.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एक वाक्य जो अक्सर प्रयुक्त होता है " बहुत सुन्दर" , मैं कहूंगा 'बहुत ही सुन्दर' रचना !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बुरा न माने तो गीत में जो छोटी-छोटी टंकण की त्रुटिया है, उन्हें ठीक कर ले ! जैसे "खैर" की जगह गलती से "खेर" लिखा गया है !

Mishra Pankaj said...

बढिया रचना .
पी.सी.गोदियाल जी के बात पर ध्यान दिजियेगा .

पंकज

अशरफुल निशा said...

Prem ki sundar abhivyakti.
Think Scientific Act Scientific