Friday, December 11, 2009

मुझे यें पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगती हैं


दीपक राग है चाहत अपनी, कैसे सुनाएँ तुम्हें ?
ख़ुद तो सुलगते ही रहते हैं, क्यूँ सुलगाएं तुम्हें ??

4 comments:

निर्मला कपिला said...

वाह वाह अकबर जी कमाल कर दिया। आपको मेरा कल का सन्देश मिल गया होगा? उतर के इन्तज़ार मे हूँ । बहुत अच्छा लिखते हैं आप भी बधाई और आशीर्वाद । रजिया जी भी बहुत अच्छा लिखती हैं धन्यवाद्

महेन्द्र मिश्र said...

कमाल की पंक्तियाँ है . बहुत बढ़िया दिल को छू जाने वाली रचना . आभार.

दिगम्बर नासवा said...

कमाल की पंक्तियाँ ......... लाजवाब.........

रज़िया "राज़" said...

वाह!!!क्या बात है अक्बरख़ान साहब!! नेट्प्रेसवालों का भी क्या कहना?