Friday, February 12, 2010

जैसी करनी!!वैसी भरनी!!





















कहीं
एक गाँव में एक आदमी रहता था।
लोग
कहते थे कि वो कहीं ओर से बसा था। पर उसने अपने आपको ये गांव काठेकेदार बना रख्खा था।
गांव में आनेवाला हर नया शख़्स उसके पैर छूए बगैर जैसे यहाँ बस नहिं सकता था।
ठेलेवाले
हो याकोई ढाबे वाले। सब पर एक ही नियम रहता था।
अब
उसकी ठेकेदारी ईतनी बढती चली कि वो अगर कहे कि देखो रात हुईहै तो गाँववालों के कहना पडता "ज़ी हाँ ये रात ही है। तारे भी ज़गमगा रहे हैं"
बस फ़िर और पूछ्ना ही क्या? उसने अपनीमायाजाल या फ़िर कहो कि दबदबा ऐसे फ़ैला दिया कि वो अपने को सारे गाँव का मालिक समजने लगा। जब भी कोईमुसीबत जाती तो गांववालों की बलि दे देता।जिन लोगों ने इस गाँव के विकास के लिये ख़ून पसीना बहाया था वो भीचूप रहते थे।
इस के अपने दो पुत्र और एक पूत्री थे। अपने भतीजे को भी अपने साथ ही पालता-पोषता। ज़ाहिर है कि बच्चे बचपन ही सेअपने पिता की करतूत देखते रहते थे। अब जवान होने लगे थे। अब ते तो बूढा होने लगा था। अपनी ठेकेदारी की विरासतकौन से बेटे को दी जाये? ये फ़िक्र में दिन रात रहता था।
और उसने अपने एक बेटे को अपना वारिस बना दिया। अब जब कि भतीज़े को चाचा की यहाँ बात ख़टकने लगी उसने उठालिया अपना बोरिया-बिस्तर और अलग अपना संसार बसा लिया।
आख़िर ख़ून तो एक ही था।
भी यह गाँव पर अपना अधिकार जताने लगा। अब वो इतना नाम करने लगा कि उसके चाचाका नाम उसके नाम से छोटा होने लगा था। बेचारे गाँववाले जाएं तो कहाँ जायें? इस तरफ चाचा भी परेशान
इसी दौरान पडोसी गाँव का छोरा वहाँ पहुंचा अपने व्योपार के सीलसीले में। हालांकी सारे मुल्क में उसके माल कीतारीफ़ होने लगी थी। व्योपार के साथ साथ वो लोगो को अच्छी अच्छी बातें भी बताया करता था। लोग वो छोरे की ओरख़िंचते चले। अब चाचा एक तरफ़ भतीजे से परेशान थे। छोरे से उन्हें कोई ख़तरा नहिं था। ख़तरा तो भतीजे से था। भतीजाचाचा की हर चाल जानता था।
अपनी ईज्जत को भतीजे के सामने गिरते हुए देख चाचा ने अपने शैतानी दिमाग़ में योजना बनाई। शोर मचाया कि इस गाँवमें सिर्फ़ गाँववाला ही अपना व्योपार कर सकता है।अगर कोई और आया तो उसकी दुकान को आग के हवाले कर दियाजाएगा। कल सुब-तक जो भी दुसरे गाँव से आकर बसे हैं वो गांव छोडकर चले जायें।चाचा को लगा कि उसकी ईसयोजना से उसका ख़ोया हुआ नाम वापस मिल जायेगा। लोगों में फ़िर से उसका डर छा जायेगा। सोचता सोचता सो गया।
सुब्ह होने पर एक शोर सूना। !
ये क्या !!गाँववाले उसी के घर के सामने सुलगती मशालें लेकर ख़डे थे। वो डर गया अपने घर के किवाडों को बंद करदिया।
तभी हंमेशां चूप रहनेवाली बहुने घर का दरवाजा ख़ोल दिया। कहा" पिताजी आपने सारे गांव के साथ हमें भी सताया था।आज में भी घर छोडकर जा रही हूं।
बेचारा बूढा!!!! कभी अपने को आईने में देखता कभी आईने को अपने में।
जैसी करनी वैसी भरनी॥

9 comments:

Mithilesh dubey said...

सच बात है ,

Unknown said...

हमे ये बिल्कुल समझ मे नही आई कि ये कहानी बाल ठाकरे चाचा की है

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सच कहा आपने..... जैसी करनी.....वैसी भरनी....

Udan Tashtari said...

सही कहा..ये तो होना ही था.

जैसे किया है वैसा मिला!

गीतिका वेदिका said...

सही है , यदि दोषी को दंड न मिले तो न्याय व्यवस्था का अपमान होता है ....

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

सच कहा आपने..... जैसी करनी.....वैसी भरनी....

arun rangari said...

jesi karni vesi bharni

Anonymous said...

Accha hai

Dr.Vinod Upadhyay said...

Bal thakre uddhav thakre raj thakre bahu smita thakre
ha ha ha,........