Tuesday, June 15, 2010

आपकी छ्त्र छाया

धक..धक..धक..धक… मौत का काउनडाउन शुरु हो चुका था।
मेरे “बाबा”(पिताजी) हम सब को छोडकर दुनिया को अलविदा कहने चले थे।
अभी सुबह ही तो मैं आईथी आपको छोडकर “बाबा”
मैं वापस आने ही वाली थी। और जीजाजी का फोन सुनकर आपके पास आ भी गई। आपके सीनेपर मशीनें लगी हुईं थीं।
आप को ओकसीजन की ज़रुरत थी शायद ईसीलिये। फ़िर भी आप इतने होश में थे कि हम तीनों बहनों और भाइ को पहचान रहे थे। आई.सी.यु में किसी को जाने कि ईजाज़त नहिं थी ।
….पर “बाबा” हमारा दिल रो रहा था कि अभी एक ही साल पहले तो मेरी “अम्मी” हमें छोडकर जहाँ से चली गई थीं । आप हम सब होने के बावज़ुद तन्हा ही थे।
हम सब मिलकर आपको सारी खुशियों में शरीक करते .....
पर “बाबा” आप !!हर तरफ मेरी “अम्मी” को ही ढूंढते रहते थे। आपको ये जहाँ से कोई लेना देना ही नहिं था मेरी “अम्मी” के जाने के बाद।
क्या “बाबा” ये रिश्ता इतना ग़हरा हो जाता है?
मुझे याद है आप दोनों ने हम तीनों बहनों को समाज और दुनिया कि परवा किये बिना ईतना पढाया लिखाया । लोग हम बेटीयों को पढाने पर ताने देते रहते थे आप दोनों को।
पर आप और अम्मी डटे रहे अपने मज़बूत ईरादों पर। यहाँ तक की आप ने हमारी जहाँ जहाँ नौकरी लगी साथ दिया। आपको तो था कि हमारी बेटीयाँ अपना मकाम बनायें।
और “बाबा” आप दोनों कि महेनत रंग लाई। हम तीनों बहनों और भाई सरकारी नौकरी मे अव्वल दर्जे के मकाम पर आ गये। शादीयाँ भी अच्छे ख़ानदान में हो गईं।
समाज को आपका ये ज़ोरदार जवाब था। आप दोनों महेंदी कि तरहाँ अपने आपको घीसते रहे और हम पर अपना रंग बिखरते रहे । अरे आप दोनों दिये कि तरहाँ जलते रहे |
और …हमारी ज़िन्दगीयों में उजाला भरते रहे। आप की ज़बान पर एक नाम बार बार आता रहा “मुन्ना” ! हम तीनों बहनों का सब से छोटा भाई।!बाबा” हमारे छोटे भाई”मुन्ना” ने भी आप को
बचाने के लिये बहोत कोशिश की है।
“बाबा” हमें थोडी सी ठोकर लगती आप हमें संभाल लेते। आप पर लगी ये मशीनरी मेरी साँसों को जकड रही थी। और आप हमारा हाथ मज़बूती से पकडे हुए थे कि
हम एकदूसरे से बिछ्ड न जायें। मौत आपको अपनी आग़ोश में लेना चाहती थी। हम आपको ख़ोना नहिं चाहते थे। “बाबा” आपकी उंगलीयों को पकड्कर अपना बचपन
याद कर रही थी मैं। वही उंगलीयों को थामे हम आज इस राह पर ख़डे हैं। आप दोनों ने हमारे लिये बडी तकलीफ़ें झेली हैं। आप हमें अपनी छोटी सी तंन्ख़्वाह में भी
महंगी किताबें लाया करते थे।
आपकी भीगी आँखों में आज आंसु झलक रहे थे। बारबार हम आपकी आँखों को पोंछ्ते रहे। नर्स हमें बार बार कहती रही कि बाहर रहो डोकटर साहब आनेवाले हैं।
मुझे गुस्सा आ रहा था कि आपको डीस्चार्ज लेकर घर ले जाउं कम से कम आपको तन्हाई तो नहिं महसूस होगी। हम दो राहे पर थे या तो आपकी जान बचायें या फ़िर आपके पास रहें।
धक..धक..धक.. में आप खामोश हो गये थोडी देर आँखें खोलकर बंद कर लीं आपने। हमें लगा आप सो रहे हैं ।
पर…. डोकटर ने आकर कहा ” He is expired”
आप हमें छोडकर आख़िर “अम्मी” के पास पहोंच ही गये। “बाबा” आपकी तस्वीर जो पीछ्ले साल ली गई थी मेरे पास है आप “अम्मी” की क़ब्र पर तन्हा बैठे हैं|
baabaa
आज आपको भी बिल्कुल “अम्मी” के पास ही दफन कर आये हैं हम। आपकी यादें हैं हमारे लिये “बाबा” यह लिखते हुए मेरी आँख़ों के आगे आँसुओं कि चिलमन आ जा रही है।
छीप छीपकर पोंछ रही हुं ताकि कोई मुझे रोता हुआ देख न ले। ये कैसी विडंबना है “बाबा”!!!!
आज की यह पोस्ट मेरे प्यारे “बाबा” को समर्पित है।

8 comments:

Mohammed Umar Kairanvi said...

यह आँसुओं से भीगी हुई यह पोस्‍ट पढकर हमारा भी बुरा हाल है, काबिले फखर हैं आपके बाबा

aarkay said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ! बाबा के प्रति आपका स्नेह काबिलेतारीफ ही नहीं काबिलेरश्क भी है . धन्य थे आपके माता-पिता कि आप सी बेटी को जन्म दिया !

माधव( Madhav) said...

feeling sad

RAJNISH PARIHAR said...

आँखों में आंसू भर आये...पिता हमेशा बेटियों के बारे में सोचता है,हमारे समाज का हाल देखते हुए पिता जानता है की यहाँ पढ़ा लिखा कर ही लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है!आपके पिता ने भी अच्छा ही सोचा..पर शायद भगवान् को भी अच्छे लोगों की जरूरत होती है!!!बहुत ही दिल छूने वाली अपनी सी लगती पोस्ट...

M VERMA said...

आपने तो बहुत मार्मिक प्रस्तुतिकरण के बाद ग़मगीन कर दिया. छू लिया दिल को.
कुछ इस तरह आपने बयान किया मानो चलचित्र सा चलता गया.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत ही भावुक पोस्ट.... आंसू आ गए....ख़ुदा अब्बू को जन्नत बख्शे....

रज़िया "राज़" said...

कैरानवी साहब, आर्केजी,माधवजी,रजनीशजी,वर्माजी तथा महफ़ूज अली. आप सभी का मेरी पोस्ट को पढने के और मेरे ग़म में शामिल होने के लिये आभार।

S.M.Masoom said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति.हमारे लिये “बाबा” यह लिखते हुए मेरी आँख़ों के आगे आँसुओं कि चिलमन आ जा रही है। छीप छीपकर पोंछ रही हुं ताकि कोई मुझे रोता हुआ देख न ले।यही होता है सबके साथ. आपकी पोस्ट पढके मुझे अपनी माँ याद आगयी, जिसके इन्तेकाल को अभी २ महिना ही हुआ है. आँख नाम है और वैसा ही महसूस हो रहा है, जैसा आपने बयां किया.